राजनांदगांव। कृषि भारत की आत्मा, किसान देष का गौरव और सिंचाई वह साधन है जिससे सर्वाधिक रोजगार पैदा किए जा सकते हैं। देष के विकास के लिए हमें सबसे पहले किसानों पर ही फोकस करना होगा। जिस देष का किसान सुखी रहेगा, उसका भाग्योदय सुनिष्चित है।
उक्त उद्गारः राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त श्री सरजियस मिंज ने षासकीय दिग्विजय महाविद्यालय में आयोजित छत्तीसगढ आर्थिक परिशद् के सम्मेलन के दूसरे दिवस हुए तकनीकी सत्र में व्यक्त किए। श्री मिंज ने कहा जब हम कृशि क्षेत्र को आजीविका के रुप में देखें तो हमारा ध्यान छोटे और सीमांत किसानों की तरफ जाना चाहिए। आजादी के बाद हमारी पंचवर्शीय योजनाओं में कृशि और किसानों की प्रगति के लिए लगातार कार्यक्रम चले हं। यह क्रम आज भी निरंतर है, किन्तु हमारी कोषिषों को ज्यादा से ज्यादा पारदर्षी और परिणाम मूलक बनाना सबसे अहम जरुरत है।
प्रारंभ में प्राचार्य डाॅ. आर. एन. सिंह ने अभ्यागत विद्वानों तथा षोधार्थियों का स्वागत करते हुए कहा कि परिशद् का यह सम्मेलन छत्तीसगढ की विकास यात्रा में सहभागिता का एक विनम्र प्रयास है। डाॅ. सिंह ने विष्वास व्यक्त किया कि आर्थिक विशयों और मुद्दों पर यहाॅं व्यक्त किये जा रहे विचारों से प्रदेष की प्रगति के लिए सोच के नए द्वार खुलेंगे। प्राचार्य डाॅ.आर. एन. सिंह सहित डाॅ. चन्द्रिका नाथवानी, प्रो. मीना प्रसाद, डाॅ. सुमीता श्रीवास्तव ने अभ्यागत अतिथि वक्ताओं का आत्मीय स्वागत किया। संयोजन करते हुए प्रो. रवीन्द्र ब्रम्हे ने तकनीकी सत्र की अपेक्षाओं पर प्रकाष डाला और कहा कि षोध पत्रो तथा विषेशज्ञों के मार्गदर्षन से यह सम्मेलन यादगार बनेगा।
प्रथम वक्ता पूर्व कृशि सचिव श्री पी. राघवन ने किसानों के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों की देखरेख पर जोर देते हुए कहा कि योजनाओं का प्रभाव धरातल पर दिखना चाहिए। आॅकडों की भूलभुलैया में नहीं, असर के राजपथ पर ही योजनाओं की सार्थकता है।
उक्त जानकारी देते हुए आयोजन के मीडिया प्रभारी डाॅ. चन्द्रकुमार जैन ने बताया कि छत्तीसगढ आर्थिक परिशद् का यह सम्मेलन विचारों की ऊर्जा तथा सुझावों की पारदर्षिता की दृश्टि से मील का पत्थर सिद्ध हुआ। उन्होंने बताया कि चर्चा में सहभागिता करते हुए अतिथि वक्ता डाॅ. ज्ञानप्रकाष ने बडे पैने और दो टूक विचार रखे। उन्होंने समावेषी विकास और कृशि पर एकाग्र उद्बोधन में कहा कि समावेषी विकास का स्वप्न साकार करने की राह में रोजगार के अभाव, षिक्षा का कमजोर स्तर, स्वास्थ्य सेवाओं में कमी, सामाजिक असमानता जैसी अनेक चुनौतियांॅ हंै, जिनका हमें डटकर मुकाबला करना होगा। खेती-किसानी, देष की जीवन रेखा है। भूमि, जल प्रबंधन, निवेष, अधोसंरचना विकास, षोध, प्रौद्योगिकीय प्रगति, मार्केट नेटवर्क, षिक्षा और कौषल विकास से इन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि समस्या की सही नब्ज टटोलकर ही समाधान प्राप्त किया जा सकता है। ऊपरी उपचार से बात नही बनेगी। माॅनिटरिंग पर जोर देते हुए, डाॅ. ज्ञान प्रकाष ने कहा कि समाज के साझा सहयोग से ही समावेषी विकास संभव है।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रतिश्ठित आर्थिक विष्लेशण प्रो. केवलचन्द जैन ने कहा कि छत्तीसगढ में खाद्यान्न उत्पादन पर्याप्त है। हमें भूमि की उत्पादकता को बढाना होगा। छोटे किसानों की सिंचाई की जरुरतंे पूरी करनी होगी। श्री दिनकर केषव भाकरे ने किसानों के महत्व पर प्रकाष डाला। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय परंपरागत से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सूत्र जुडे हुए है। सत्र में डाॅ. पद्मावती, प्रो. सत्यनारायण अग्रवाल, डाॅ. महेष श्रीवास्तव ने सहभागिता की। वक्ताओं ने छत्तीसगढ में खाद्यान्न सुरक्षा, कृशि विकास की संभावनाएॅ और सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर विविध विचार व्यक्त किए।
छ.ग. आर्थिक परिशद् के सम्मेलन के पहले दिन भी तकनीकी सत्र हुए। प्रथम सत्र में बारह षोध पत्र प्रस्तुत किए गए। इन में श्री कार्तिक कुमार पटेल, कु. प्रगति कृश्णनन, डाॅ. बी.एल. सोनेकर एवं डाॅ. सुनील कुमेटी, डाॅ. अनिल चैधरी एवं श्री तपेष कुमार गुप्ता, श्री तपेष चन्द्र गुप्ता, डाॅ मनीशा पाण्डेय, डाॅ. अपर्णा घोश, डाॅ. श्रद्धा मिश्रा, डाॅ. पी.पी. चन्द्रवषी, ममता वर्मा एवं श्री रुपेष कुमार नाग, श्री प्रभात पाण्डेय तथा कु. अंकिता तिवारी के षोध पत्र षामिल थे। दूसरे दिन षाम तक तकनीकी सत्रो का सिलसिला चलता रहा। समापन प्रसंग पर प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किये गये। प्राचार्य डाॅ. आर. एन. सिंह एवं अर्थषास्त्र विभाग तथा आयोजन समिति ने सबका आभार माना।