शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के इतिहास विभाग में सुभाषचंद्र बोस जयंती मनाई गई। इस अवसर पर कार्यक्रम का संचालन करते हुये डाॅ.शैलेन्द्र सिंह ने कहा कि- सुभाषचंद्र बोस ने 1920 में आई.सी.एस.की परीक्षा उत्तीर्ण की किन्तु देशप्रेम की भावना के कारण अंग्रेजी शासन के अधीन नौकरी करना स्वीकार नही किया। उनके राजनीतिक गुरू देशबंधु चितरंजन दास थे। सुभाषचंद्र बोस की गतिविधियों व क्रांतिकार विचारधारा के कारण 1940 में उन्हे गिरफ्तार कर कलकत्ता के जेल में रखा गया। इस अवसर पर उन्होंने सरकार को लिखा- मुझे स्वतंत्र कर दो। अन्यथा मैं जीवित रहने से इन्कार कर दूंगा। इस बात का निश्चय करना मेरे हाथ में है कि मैं जीवित रहँ या मर जाऊँ। सुभाष बाबु ने इसी समय कहा- ” मैं अपने देशवासियों से कहना चाहता हूँ कि दासता से बड़ा कोई अभिशाप नही है। यह हमें कभी नही भूलना चाहिये। ”
मुख्य वक्ता प्राचार्य डाॅ.आर.एन.सिंह ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सुभाषचंद्र बोस का विशेष योगदान रहा है। 1938 में हरिपूरा कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होने के बावजूद उन्होंने देशहित में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्याग पत्र देकर 1939 में फारवड़ ब्लाक की स्थापना की। उन्होंने भारत को आजाद करने के लिये इटली, जापान व जर्मनी की सरकारों से सहयोग लेने हेतु प्रयास किया। आजादहिन्द फौज को सशक्त बनाने के लिये रासबिहारी बोस ने उसके संचालन का कार्य सुभाष जी को सौंपा। 1943 में उन्होंने आजादहिन्द फौज का नेतृत्व संभाला और उसी समय से उन्हे नेताजी की उपाधी दी गई। 22 सितम्बर 1944 को सुभाषचंद्र बोस ने शहीद दिवस मनाया तथा घोषणा की – श्हमारी मातृभूमि स्वतंत्रा की खोज में है। तुम मुझे अपना खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा। आभार प्रदर्शन डाॅ.प्रियंका वैष्णव द्वारा किया गया।