02
October, 2017
महाविद्यालय में राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का उद्घाटन
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महाविद्यालय में राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का उद्घाटन

साहित्य अकादमी तथा शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में गजानन माधव मुक्तिबोध जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन हुआ। इस अवसर पर साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि मुक्तिबोध की रचनाओं में मानसिक अंतद्र्वन्द व तीखे सामाजिक अनुभव की परिणति दिखाई देती है। वह विचार को कर्म में परिणत होना आवश्यक मानते थे और स्वयं को भी व्यक्तिगत शुचिता की कसौटी पर रखते थे।
कार्यक्रम के प्रारंभ में स्वागत उद्बोधन देते हुए साहित्य अकादमी के सचिव श्री के. श्रीनिवासराव ने मुक्तिबोध को मानवतावादी बताया। उद्घाटन वक्तव्य देते हुए समाजसेवी श्री कन्हैयालाल अग्रवाल ने मुक्तिबोध के जीवन संस्मरण प्रस्तुत किए। उन्होनें यह भी कहा कि मुक्तिबोध के लेखन का मुख्य चिंतन मनुष्य को सुखी व समृद्ध बनाना है।
विशिष्ट अतिथि श्री राजेन्द्र मिश्र ने कहा कि यद्यपि मुक्तिबोध ने कोई महाकाव्य नहीं रचा लेकिन उनकी रचनाओं के आधार पर उन्हें महाकाव्यकार भी कहा जा सकता है। बीज वक्तव्य देते हुए श्री नंदकिशोर आचार्य ने कहा कि मुक्तिबोध काव्य प्रक्रिया की स्वायत्ता के समर्थक थे। उनकी रचनाओं में संवेदनात्मक ज्ञान है, जटिल स्तरो पर यथार्थ को संवेदनात्मक प्रक्रियाओं के माध्यम से ही समझा जा सकता है। मुक्तिबोध की कविताएं अनुभूति को संप्रेषित करती हैं।
कार्यक्रम का कुशल संचालन कुमार अनुपम ने किया। अंत में हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ. शंकरमुनि राय ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में मुख्य रुप से श्री रमेश मुक्तिबोध, श्री अशोक चैधरी एवं बड़ी संख्या में प्रतिष्ठित साहित्यकार, प्राध्यापक एवं छात्र उपस्थित थे।

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